हिंदी सिनेमा आज पूरे विश्व की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है जहाँ से पूरे विश्व के मुकाबले सबसे अधिक फ़िल्में रिलीज़ होती हैं| और अभी बीते दिनों ही हमारे भारतीय सिनेमा की 108वीं वर्षगाँठ थी और ऐसे में हम आपको आज एक दिलचस्प जानकारी देने जा रहे हैं| दरअसल अपनी आज की इस पोस्ट के जरिये हम आपको इंडस्ट्री की बनी पहली फिल्म के बीच की कहानी बताने जा रहे हैं के आखिर इसे बनाने में क्या क्या दिक्कतें आई और किन कोशिशों के बाद यह फिल्म आखिरकार बनकर तैयार हुई|

यह पूरी स्टोरी दादा साहब फाल्के से जुडी हुई है जिनका जन्म 30 अप्रैल, 1870 को हुआ था| दादा साहब की बात करें तो इन्होने कभी कोई फिल्म नही देखि थी और ऐसे में एक दिन दोस्त की जिद पर वो एक फिल्म देखने को तैयार हुए जिसके लिए वो मुंबई के अमेरिका इंडिया थिएटर पहुंचे| थिएटर में अमेजिंग एनिमल नाम की अंग्रेजी फिल्म लगी थी और जब पहली बार उन्होंने इंसानों को यूं पर्दों पर चलते देखा तो दंग रह गये| जिसके बाद घर आकर उन्होंने फिल्म का ज़िक्र सभी को किया पर किसी को उनका यकीन नही हुआ|

इसके बाद आखिरकार परिवार के साथ वो फिल्म देखने पहुंचे और तब जाकर सबको उनका यकीन हुआ| बता दें के इस वक्त तक दादा साहब की उम्र तकरीबन 41 साल थी| और इसी के बाद उनके मन में भी ऐसी फिल्म बनाने की इच्छा जगी जिससे के विश्व को वो भारतीय संस्कृति से रूबरू करा सके| क्योंकि उस फिल्म के बाद एक अन्य फिल्म में उन्होंने जीसस क्राइस्ट को भी फिल्म में देखा था|

फिल्म मेकिंग के जुनून ने पहुंचा दिया लंदन

फिल्म बनाने की जिद में दादासाहेब फालके लन्दन के लिए रवाना हो गये जहाँ इन्होने दो हफ्तों के लिए फिल्म मेकिंग का कोर्स किया और उसके बाद से वापस मुंबई आ गए| मुंबई लौटकर इन्होने 1 अप्रैल, 1912 को खुद के नाम से ही यानि फाल्के फिल्म्स नाम की एक प्रोडक्शन कम्पनी शुरू की और अपनी फिल्म के लिए विलियमसन कैमरा और कोडक रियल फिल्म्स के ऑर्डर्स लगा दिए जो के मई 1912 को उन्हें मिले|

कास्टिंग कलाकारों का चयन

कलाकारों के चयन के लिए इन्होने अखबारों में विज्ञापन दे दिए जिसके बाद कई कलाकार आये पर अधिकतर ऐसे रहे जिनकी एक्टिंग दादा साहेब फाल्के को पसंद नही आई और आखिरकार इन्हें पांडुरंग, गदाधर स्नेह, गजानन वासुदेव और दत्तात्रेय दामोदर दबके पसंद आये जिनमे से डबके का व्यक्तित्व राजा हरिश्चंद्र के किरदार से लिए उन्होंने चुना|

इस तरह बना इतिहास

एक्टर्स, पटकथा और सभी सामान जब तैयार हो गये तो इन्होने असली फिल्म मेकिंग का काम शुरू किया जिसके लिए लगातार 21 दिनों तक इन्होने काम किया| इसके बाद जाकर फिल्म राजा हरिश्चंद्र सामने आई जो के 50 मिनट की फिल्म थी और यह फिल्म एक मूक फिल्म थी इसलिए इसमें म्यूजिक वगैरह लगाने की जरूरत नही पड़ी| 21 दिनों के काम के लिए दादा साहेब फाल्के नें कलाकारों को 40 रुपयों का वेतन दिया| और 21 अप्रैल, 1913 को ओलम्पिया थिएटर में इस फिल्म को प्रीमियर किया गया| इसे देखने हज़ारों की संख्या में लोग पहुंचे थे जिसे देख दादा साहेब फाल्के का मन भर आया| और कुछ इस तरह दादा साहेब फाल्के नें इतिहास रच दिया|

 

By Anisha